Thursday, 14 September 2017

चरमपंथी साम्प्रदायिकवाद की घोर आलोचक के रूप में विख्यात बेंगलुरू की रहने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की जघन्य हत्या ने एक बार फिर इस बात पर फोकस बना दिया है कि विभाजन और असहिष्णुता की राजनीति के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को लक्ष्य बनाकर हमले किए जाते हैं। 

नरेन्द्र दाभोलकर, गोबिन्द पनसारे तथा एम.एम. कालबुर्गी और अब गौरी लंकेश सहित पत्रकारों, विचारिकों तथा एक्टिविस्टों की हत्याओं का जैसे हाल ही में सिलसिला चल निकला है वह एक निश्चित ढर्रे का हिस्सा है। उक्त सभी लोग तर्कवादी होने के साथ-साथ कट्टरवादी हिन्दुत्व के आलोचक थे और इन सभी की हत्याओं का तरीका एक जैसा है। महत्वपूर्ण बात है कि इनमें से किसी ने भी ऐसी बातें नहीं लिखी थीं जो संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करती हों। सितम की बात यह है कि बेशक सभी हत्याओं में हमले का तरीका एक जैसा है तो भी पुलिस किसी अपराधी को न तो काबू कर सकी है और न ही किसी संदिग्ध की पहचान कर सकी है। 

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