Friday, 12 May 2017

आर.एस.एस. और इससे संबंधित संगठन भारत को एक धर्म आधारित हिन्दू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उनके पास सत्ता की बागडोर है, प्रचार साधन हैं और कार्पोरेट घरानों तथा वैश्विक साम्राज्यवाद का पूर्ण समर्थन भी हासिल है। आर.एस.एस. द्वारा जन सेवा, संस्कृति एवं सामाजिक कार्यों के नाम तले चलाई जा रही सैंकड़ों संस्थाएं वास्तव में संघ की विचारधारा का प्रसार करने वाली मशीनें हैं। 

संघ द्वारा अपना लक्ष्य प्रत्येक संवैधानिक एवं गैर-संवैधानिक ढंग से हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है। देश की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुखों की नियुक्ति, सुरक्षा बलों एवं सरकारी मशीनरी अंध राष्ट्रवाद, आतंकवाद का सफाया और पाकिस्तान को तबाह करने जैसी भड़काऊ भावनाओं का बोलबाला है। गौरक्षा के नाम पर भी सशस्त्र गिरोहों द्वारा किसी भी व्यक्ति या समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है और हर ऐसा कार्यक्रम संगठित करने का उन्हें लाइसैंस मिला हुआ है जिसके माध्यम से वह विशाल हिन्दू समुदाय के मनों में मोदी सरकार को एक ‘हिन्दू’ के रूप में स्थापित कर सके। 

सरकारी और कार्पोरेट घरानों के नियंत्रण वाला मीडिया हर प्रकार की नैतिकता को ताक पर रख कर संघ और इससे जुड़े संगठनों का प्रचारक बना हुआ है। समूचे इतिहास, शैक्षणिक पाठ्यक्रम, सामाजिक कायदे-कानूनों को वैज्ञानिक पटरी से उतार कर सम्प्रदायिकवाद, प्रतिक्रियावाद और  प्रतिगामी प्रवृत्तियों के रास्ते पर चलाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम हो रहा है। जहां मोदी ‘सबका साथ, सबका विकास’ का मंत्रोच्चार किए जा रहे हैं वहीं संघ परिवार के लोग धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र तथा आजादी के सिद्धांतों का ‘सर्वनाश’ करने में व्यस्त हैं। इस उद्देश्य की सफलता हेतु पूरा सरकारी तंत्र संघ परिवार की ङ्क्षहसक, साम्प्रदायिक एवं असहिष्णुता पूर्ण कार्रवाइयों की पीठ थपथपा रहा है। 

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