Saturday, 5 November 2016

भारतीय सेना की प्रशंसा और अनादर साथ साथ क्योंकर ?
आजकल भारती सेना विचित्र दौर से गुज़र रही है.आज़ादी के बाद पहली बार सेना को राजनीतिक मोहरा बनाकर राजनीतिक स्वार्थों  की पूर्ति की जा रही है.डिफेन्स मिनिस्टर मनोहर पारिकर ने देश वासियों का यह कहकर ज्ञान बढाया है कि सेना ने जिस वीरता और शौर्य का प्रदर्शन किया है वह केवल मंत्रीजी की राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से प्रेरित सोच के कारण संभव होसका है तथा सेना के योद्धा हनुमान की तरह थे जिन्हें सर्जिकल स्ट्राइक से पहले अपनी  शक्ति का अहसास न था.चलिए कुतर्क को तर्क मान कर चलने में ही देश द्रोही के आरोप से अपने को बचाते हैं.
सेना की संघ प्रेरित नवीनतम परिभाषा के वातावरण और शौर में यह दुखद समाचार मिलता है कि एक रैंक एक पेंशन के मसले पर एक और सैनिक ने ज़हर खाकर खुदकशी कर ली .सैनिकों की विकलांग पेंशन रेट को घटा दिया गया है तथा सिविल ऑफिसर्स की तुलना में उनका स्टेटस घटा दिया गया है.यहाँ यह कहना प्रासंगिक ही होगा कि 6th पे कमीशन तथा 7th पे कमीशन की क्रमशा कथित ३६ तथा ४६ विसंगतियों पर पहले ही सैनिकों में अवहेलना और तिरस्कारपूर्ण भेदभाव की भावना व्याप्त है.
प्रधानमंत्री का सुझाव कि रेलवे स्टेशन तथा एअरपोर्ट पर सैनिकों को पूरा मानसम्मान मिलना चाहिये जैसा कि विदेशों में परम्परा है -स्वागत योग्य है परन्तु  ज़मीनी सचाई में  मूलभूत सकारात्मक परिवर्तन के बिना तथा  सैनिकों का किसी भी प्रकार के राजनीतिकरण के बिना यह कैसे मुमकिन हो सकता है -इस प्रशन का उत्तर कौन दे सकता है ?

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