डबल श्री रवि शंकर इन दिनों खिसके हुए हैं। नोबल पुरस्कार को लेकर ऐसे बयान दे रहे हैं जो उनके खिसकने के पूरे प्रमाण देते हैं। उनका खिसकना उनकी खिसियाहट से जुड़ा हुआ है। नहीं मिले तो अंगूर खट्टे हैं वाली बात भी है और मार्केटिंग के फेल हो जाने की भी। फिर फिल्मी धुनों पर थिरकने वाला उनका छिछोरा विडियो तो वायरल हो ही चुका है, जिससे उन्होंने गंभीर संत की जो छवि बनाई थी वह भी ध्वस्त हो गई है। हालाँकि लोगों को तो अब उनमें आसाराम भी दिखलाई देने लगे हैं यानी उनका मार्केट नाम के साथ जुड़े श्री की तरह डबल हो रहा है।
रवि शंकर अपने गुरु का नाम छिपाते हैं लेकिन महर्षि महेश योगी के चेलत्व ने ही उन्हें सिखाया था कि दुनिया भर में मशहूर होने का विशुद्ध भारतीय फॉर्म्युला यही है कि पुराने आध्यात्मिक माल को रीपैकेज करो और उसे अद्भुत बताते हुए बेचना शुरू कर दो। माल भी ऐसा लो जिसमें कुछ ख़र्चा न हो, मसलन ध्यान, योग या अध्यात्म। इनकी पुड़िया विदेशों में ख़ूब बिकती हैं। पश्चिम का खाया-अघाया समाज डॉलर-पौंड के साथ टूट पड़ता है। ख़ुद महर्षि ने ध्यान योग के आइटम बेचकर साठ हज़ार करोड़ की संपत्ति बनाई थी। रवि शंकर को चेला बने रहना मंज़ूर नहीं था इसलिए उन्होंने अपने गुरु को चकमा देकर अलग दुकान खोल ली। सुदर्शन क्रिया का फ़र्ज़ी प्रोडक्ट बनाया और उसे बेचना शुरू कर दिया। योग से भोग और भोग में योग तक की यात्रा ने उऩ्हें देश के सबसे धनवान संतों में से एक बना दिया है। उनका आर्ट ऑफ लिविंग धनी वर्ग में ख़ूब बिकता है। इसलिए बाबा हमेशा बौराए से रहते हैं।
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