रिश्वत का अध्यात्मिक रिश्ता !
जब तक धर्म भक्त अपने अपने धर्मस्थलों में अपने अपने इष्ट देव का तुष्टिकरण करते हुए भक्तिस्वरूप चढावा चढाते रहेंगे और वह चढावा नैवेद्य कहलाया जायेगा, न भ्रष्टाचार की मानसिकता समाप्त होगी और न ही रिश्वत का महारोग समाप्त होगा.
जब परदा कोई नहीं खुदा से,
तो बन्दों से डरना क्या?
जब तक धर्म भक्त अपने अपने धर्मस्थलों में अपने अपने इष्ट देव का तुष्टिकरण करते हुए भक्तिस्वरूप चढावा चढाते रहेंगे और वह चढावा नैवेद्य कहलाया जायेगा, न भ्रष्टाचार की मानसिकता समाप्त होगी और न ही रिश्वत का महारोग समाप्त होगा.
जब परदा कोई नहीं खुदा से,
तो बन्दों से डरना क्या?
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