Monday, 27 July 2015

धार्मिक पाखंड का वर्चस्व !
स्वतंत्रता के 68 वर्षों के बाद 21वीं शताब्दी में भी भारतीय समाज पर धर्मांधता और पाखंड का वर्चस्व पहले से भी अधिक हावी है. यहाँ आज भी शिक्षा संस्थानों और चिकित्सालयों से कहीं अधिक धर्मस्थल और धर्मस्थान हैं जहां यज्ञ, कर्मकांड, जप, पूजा, नमाज़, रोज़े, अखण्ड पाठ, प्रेयर, प्रार्थना, तीर्थ, व्रत, जगराता, पंड़े, पुजारी, मुल्ला, मौलवियों, व पादरियों ने धूम मैं रखी है. अंधभक्त उन्हीं के मार्ग दर्शन और दिशा निर्देश पर चलते हैं. अधिकांश लोगों ने तर्कशील और वैज्ञानिक सोच को तिलांजलि दे रखी है ,जिस के फलस्वरूप -जो चाहोगे वही मिलेगा के प्रतीक के रूप में लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र, हनुमान चालीसा यंत्र, अल्ला यंत्र, नज़र बचाओ यंत्र, अंगूठी, तावीज़, गंड़े, हर रोग को चुटकी में ठीक करने वाले योग, असाध्य से असाध्य रोगों का शतप्रतिशत ठीक करने का धंधा ज़ोरशोर से चल रहा है.

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