गर्व से कहो, मैं नास्तिक हूँ।
सीना तान कर और गर्दन उठा कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
ऊंची से ऊंची जगह पर खड़े हो कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
सारी दुनिया को सुना कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
क्योंकि नास्तिक एक अच्छा इन्सान होता है।
सीना तान कर और गर्दन उठा कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
ऊंची से ऊंची जगह पर खड़े हो कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
सारी दुनिया को सुना कर कहो, मैं नास्तिक हूँ।
क्योंकि नास्तिक एक अच्छा इन्सान होता है।
वह अपने मां-बाप की सन्तान होता है।
अपने बहन-भाइयों का बहन-भाई होता है।
अपने बच्चों का मां-बाप होता है।
अपने सगे-संबंधियों और रिश्तेदारों का रिश्तेदार होता है।
इसलिए कि वह आकाश से नहीं टपका था।
वह शून्य से नहीं प्रकट हुआ था।
वह अपने मां-बाप के शरीर से उगा था,
किसी इश्वर की कृपा से नहीं।
किसी देवी-देवता की दया से नहीं।
नास्तिक जीने के लिए पैदा होता है।
वह जी भर कर जीना चाहता है।
वह भरपूर जीना चाहता है।
वह चाहता है की मरने के बाद भी
अपनी संतानों के रूप में जिन्दा रहूँ।
वह जीने के लिए अपना भोजन जुटता है।
अपनी रक्षा के लिए हर कोशिश करता है।
अपनी मौत को टालने के लिए उपाए करता है।
वह निर्लेप नहीं, सन्यासी नहीं, उदासीन नहीं,
निर्मोही नहीं, आसक्त बनना चाहता है।
वह प्यार करता है, इश्क करता है, लव करता है।
वह मोक्ष नहीं चाहता, मुक्ति नहीं मांगता।
वह हर हाल में जीना चाहता है।
वह जनता है की इस दुनिया में
वह अकेला नहीं, अलग नहीं, न ही वह स्वतंत्र है।
यहाँ हर कोई हर किसी पर निर्भर है।
हर कोई हर किसी का सहारा है।
नास्तिक अपने को मानव समाज का
एक जिम्मेदार सदस्य मानता है,
पूरे जीवजगत का एक अभिन्न अंश मानता है।
अपने बहन-भाइयों का बहन-भाई होता है।
अपने बच्चों का मां-बाप होता है।
अपने सगे-संबंधियों और रिश्तेदारों का रिश्तेदार होता है।
इसलिए कि वह आकाश से नहीं टपका था।
वह शून्य से नहीं प्रकट हुआ था।
वह अपने मां-बाप के शरीर से उगा था,
किसी इश्वर की कृपा से नहीं।
किसी देवी-देवता की दया से नहीं।
नास्तिक जीने के लिए पैदा होता है।
वह जी भर कर जीना चाहता है।
वह भरपूर जीना चाहता है।
वह चाहता है की मरने के बाद भी
अपनी संतानों के रूप में जिन्दा रहूँ।
वह जीने के लिए अपना भोजन जुटता है।
अपनी रक्षा के लिए हर कोशिश करता है।
अपनी मौत को टालने के लिए उपाए करता है।
वह निर्लेप नहीं, सन्यासी नहीं, उदासीन नहीं,
निर्मोही नहीं, आसक्त बनना चाहता है।
वह प्यार करता है, इश्क करता है, लव करता है।
वह मोक्ष नहीं चाहता, मुक्ति नहीं मांगता।
वह हर हाल में जीना चाहता है।
वह जनता है की इस दुनिया में
वह अकेला नहीं, अलग नहीं, न ही वह स्वतंत्र है।
यहाँ हर कोई हर किसी पर निर्भर है।
हर कोई हर किसी का सहारा है।
नास्तिक अपने को मानव समाज का
एक जिम्मेदार सदस्य मानता है,
पूरे जीवजगत का एक अभिन्न अंश मानता है।
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