मार्टिन निमोलर* के यह शब्द उन बुद्धिजीवियों के नाम जो आज तटस्थ या खामोश हैं :-
जो आज चुप हैं, उनको मार्टिन नीमोलर की कविता याद करने की ज़रूरत है। इस कविता के कई रूप हैं। मैं इसका एक वर्शन नीचे दे रहा हूं। इसमें आप कम्युनिस्टों, श्रमिक नेताअों और यहूदियों की जगह सेक्युलरों, मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों, प्रगतिशीलों, आदिवासियों, तर्कवादियों, नास्तिकों, कलाकारों, नाटककारों कुछ भी लिख सकते हैं और यह कविता आज के भारत की कविता हो जाएगी।
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
फिर वे श्रमिक नेताओं के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं श्रमिक नेता नहीं था।
फिर वे यहूदियों के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था.
फिर वह मेरे लिए आये परन्तु मेरे लिए कोई बोलनेवाला बचा ही नहीं था.
*जर्मन बुद्धिजीवी, (1892-1984) जिस ने यह व्यंग्यात्मक शब्द अन्य बुद्धिजीवियों की हिटलर के विरुद्ध उन की खामोशी /तटस्थता पर लिखे थे.
जो आज चुप हैं, उनको मार्टिन नीमोलर की कविता याद करने की ज़रूरत है। इस कविता के कई रूप हैं। मैं इसका एक वर्शन नीचे दे रहा हूं। इसमें आप कम्युनिस्टों, श्रमिक नेताअों और यहूदियों की जगह सेक्युलरों, मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों, प्रगतिशीलों, आदिवासियों, तर्कवादियों, नास्तिकों, कलाकारों, नाटककारों कुछ भी लिख सकते हैं और यह कविता आज के भारत की कविता हो जाएगी।
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
फिर वे श्रमिक नेताओं के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं श्रमिक नेता नहीं था।
फिर वे यहूदियों के लिए आये
मैं चुप रहा, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था.
फिर वह मेरे लिए आये परन्तु मेरे लिए कोई बोलनेवाला बचा ही नहीं था.
*जर्मन बुद्धिजीवी, (1892-1984) जिस ने यह व्यंग्यात्मक शब्द अन्य बुद्धिजीवियों की हिटलर के विरुद्ध उन की खामोशी /तटस्थता पर लिखे थे.
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