Tuesday, 6 December 2016

वेदों में "विज्ञान "-मिथ्या आत्मसंतोष एवं आत्मवंचना। 
केन्द्र और कुछ राज्यों में आर एस एस नियंत्रित भाजपा सरकारों के आधिपत्य के साथ ही प्राचीन "हिंदू विज्ञान "की सरकारी चर्चा का मीडिया में बोल बाला खूब ज़ोरों से चल रहा है, विशेष रुप से वेदों में तथाकथित विज्ञान की। मैं विनम्रतापूर्वक "वैदिक वैज्ञानिकों "से जानना चाहता हूँ :-
*यदि वेदों में वास्तविक विज्ञान था तो हज़ार सातों से उन्हें पढने, कंठस्थ करने और उन पर भाष्य लिखने वालों विद्वानों ने कोई भी आविष्कार विदेशी वैज्ञानिकों से पहले क्यों नही किया?
*यदि वेदों में विज्ञान था तो प्राचीन काल में बड़े बड़े वेदज्ञ विद्वानों में से किसी ने भी इस का उल्लेख क्यों नही किया? वेदों के जो प्राचीन भाष्य मिलते हैं जिन में एक एक शब्द की विस्तृत व्याख्या की गई है, उन में वेद मंत्रों के जो अर्थ किए गए हैं उन में से किसी वैज्ञानिक सत्य का परिचय क्यों नही मिलता?
*क्या 18-19वीं शताब्दी के मध्य तक सभी वेदज्ञ विद्वान मूर्ख थे जो उन्हें वेदों के मंत्रों के ठीक अर्थ न सूझ सके और वह उन में से विज्ञान न निकाल सके?
*वेदों के कुछ महान असाधारण अविष्कार :-
1.पृथ्वी गतिहीन और खड़ी है।
2.घूमता सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर पृथ्वी के चारों ओर परिभ्रमण करता है।
3.चंद्रलोक पृथ्वी के चारों ओर घूमता है।
4.सूर्य ग्रहण के समय सूर्य को स्वभार्नु नामक आसुर आ दबोचना है और अत्रि व अत्रिपुत्र उसे उस आसुर से मुक्त करते हैं।
#हरिॐ

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