Saturday, 17 September 2016

क्या नास्तिक  मुर्ख हैं ???
नास्तिक बनना सरल नहीं है.नास्तिक को धर्म के मार्ग पर चलने वाले जनसाधारण और बुद्धिमान -दोनों का विरोध सहना पड़ता है.तथाकथित ईश्वरीय सत्ता को चुनोती देना,कपोलकल्पित स्वर्ग के सुखों को ठुकराना साधारण बुद्धिमान का काम नहीं है.मूर्ख तो बिना सोचे समझे धर्म के मार्ग पर चल पड़ता है चाहे इन में निरा धोखा ही हो.
नास्तिक को मुर्ख कहने से पहले सोचना चाहे कि आँख बंद करके जनसाधरण के मार्ग पर चलने वाला बुद्धिमान होता है या चलती राह की अच्छाई बुराई सोचकर  नया मार्ग बनाने वाला व्यक्ति ?चलती राह चलने के लिए -मेरे विचार में बुद्धि या तर्क की बिल्कुल आवश्यकता नहीं होती है.बैल ,घोडे,कुत्ते आदि भी बिना किसी निर्देश के दूसरों के पीछे चलने में सफल हो जाते हैं-जबकि नयी राह का निश्चय साधरण आदमी भी नहीं कर पाते ,इस में बुद्धि की अपेक्षा होती है.
#प्रालोभन
आस्तिकता में इतनी सुविधाएँ हैं कि विवेक तथा बुद्धिरहित लोग इधर उधर ही दौडते हैं .बुद्धि को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं.किसी प्रकार का विरोध भी नहीं सहना पड़ता और सर झुकाते ही मानो स्वर्ग का रास्ता खुल जाता है.दूसरी ओर नास्तिक के हालात पर विचार कीजिए.उसे स्वर्ग ठुकरा कर नरक में जाने का काल्पनिक भय सहना पड़ता है तथा समाज के राह भूले लोगों का विरोध और तिरस्कार सहना पड़ता है.भीड़ का हिस्सा बनना आसान है और भीड़भाड़ से परे हट कर चलना कठिन और असाधारण है.चलती परंपरागत रीति रिवाजों पर प्रश्नचिन्ह लगाना ,आलोचना करना तथा नया मार्ग तलाश करने में जो दिमागी कसरत करनी पड़ती है -वह क्या मुर्ख के बस की बात है ?साधरण आदमी तो इसका अनुमान भी नहीं लगासकता.बुद्धि की कसौटी पर खरे गिनेचुने में मूर्ख को स्थान नहीं मिल सकता.मूर्ख होना आस्तिकों की ही सेना में संभव है.क्या जनसाधरण को जीवन का कल्पना रहित वास्तविक मार्गदर्शन करनेवाले मूर्ख हो सकते हैं .कदापि नहीं .

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