Saturday, 23 April 2016

अरे भक्तो, सरस्वती को तो माफ़ करो !
लुप्त सरस्वती नदी को पिछले दो सौ सालों में न जाने कितने वैज्ञानिक, भूगोलशास्त्री-भूगर्भशास्त्री खोज करते-करते इस दुनिया से विदा ले चुके हैं या कहें कि यह दुनिया उन्हें विदा दे चुकी है। फिर भी हमारी हिम्मत है कि नहीं टूटी है। अटलजी के जमाने में भी एक बार सरस्वती की खोज हुई थी। अब मोदीजी के जमाने में भी हो रही है।
उधर यह लग रहा है कि सरस्वती नदी बहुत अड़ियल है, वह खोजने वाले लोगों और सरकारों को विलुप्त करके स्वयं भी लुप्त रहती है। ऐसा लगता है कि गंगा-जमुना की आज की हालत देखते हुए सरस्वती को विलुप्त रहने में ही अपनी बुद्धिमानी नजर आती है। और साथ ही उसे खोजने वालों को लुप्त करना भी। वह नदी है और ऊपर से लुप्त भी, इसलिए उसका कुछ बिगाड़ा नहीं जा सकता, वरना तो उसे गंगा-यमुनावाली हालत में ला कर अच्छा सबक सिखाया ही जा सकता था।
वैसे मैं हूं क्या, सवा सौ करोड़ भारतीयों में महज एक भारतीय। मुझे तो आजकल यह भी लगता है कि मैं राष्ट्रभक्तों की श्रेणी में भी हूं या नहीं क्योंकि मुझसे गलती यह हुई है कि जब राष्ट्रभक्ति का सार्टिफिकेट मुफ्त मिल सकता था, लेना जरूरी नहीं समझा और आजकल जो बांटने वाले हैं, उनसे मांगने की हिम्मत नहीं पड़ती। लोग डरा रहे हैं कि अगर आज तो गांधी जी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर भी होते तो उन्हें देशद्रोही बता दिया जाता, तो तू है किस खेत की मूली! अव्वल तो वे तुझे सर्टिफिकेट देंगे नहीं और तेरी बढ़ती उम्र का थोड़ा लिहाज कर भी लिया तो मना करेंगे नहीं, देंगे भी नहीं। वे तुझे उसी तरह लटका कर रखेंगे, जैसे हर सरकार में सीबीआई मुलायम सिंह यादव और मायावती जी को लटकाए रखती है। हां तो खैर बात नदी सरस्वती की हो रही थी। मेरी मान्यता है कि वह अब तो मिलने से रही।[आभार माननीय विष्णु नागर जी के प्रति)

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