Sunday, 1 February 2015

परजीवी ब्राह्मणों के सुख साधन का पर्व श्राद्ध पक्ष !
यदि अपने पूर्वजों की याद में खिलाना पिलाना दान देना आवश्यक है तो केवल आशिवन महीने में १५ दिन ही इस के लिए निश्चित क्यों ?वह भी केवल ब्राह्मणों को ही क्यों दिया जाए?दान भूखे नंगे लंगड़ेलूले उपाहिज गरीब व्यक्तियों को दिया जाये चाहे वह किसी देशजाति के हों- वह इस के अधिकारी क्यों नहीं ?
कुछ जिज्ञासा कुछ प्रश्न ???
# यदि पितर नाम शरीर का है तो शरीर को जलाने के पश्चात वह हमारा पितर कैसे रहा ?
# यदि केवल आत्मा का ही नाम पितर है तो आत्मा न कभी जन्मती है न मरती है और न किसी का पुत्र पितादि बनती है.
# यदि शरीर सहित आत्मा का नाम पितर है तो शरीर छूटने के बाद हमारे पितर ही नहीं रहे.शरीर नाश हो जाने पर पितृधर्म कहां रहता है ?जब पितृधर्म नहीं तो पितृ श्राद्ध कैसा और क्यों.
# श्राद में पितर सशरीर आते हैं या बिना शरीर ?
# यदि सशरीर आते हैं तो फिर ब्राह्मणों को क्षीरपूरी हलवा आदि खिलाने की क्या अवश्यकता है ?पितर तो खाते नहीं देख कर ही तृप्त होते हैं.
# क्या इन ब्राहम्णों को यह पता होता है कि मृतक पितर की आत्मा इस समय कहाँ है जिस से भोजन व अन्य वस्तुऐं उन के पास पुहंचा सकें?
# क्या देवलोक,स्वर्गलोक ,विष्णुलोक आदि में अन्न जल वस्त्र की कमी है?शेष ३५० दिनों के लिए पितरों की क्या भोजन व्यवस्था है ?
# कर्मानुसार यदि पितर निकृष्ट योनि पशुपक्षी कीडेमकोड़े
को प्राप्त हुए हैं तो क्या वह क्षीरपूरी हलवा आदि उन को मांस घास या मल के रूप में प्राप्त होगा?
# कौओं और पितरों का क्या सम्बन्ध है जो श्राद पक्ष में उन्हें विशेष रूप से भोजन दिया जाता है ?

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